एमएमटीटीसी, जामिया ने किया ‘सोशल इनक्लुज़न एंड इन्क्लूसिव पोलिसीज़ : टुवर्ड्स इक्विटी एंड इनक्लुज़न’ विषय पर दो साप्ताहिक अंतःविषय रिफ्रेशर कोर्स संपन्न
जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) स्थित मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र (एमएमटीटीसी) ने 14 जुलाई से 26 जुलाई, 2025 तक आयोजित ‘सोशल इनक्लुज़न एंड इन्क्लूसिव पोलिसीज़ : टुवर्ड्स इक्विटी एंड इनक्लुज़न’ शीर्षक पर दो सप्ताह का ऑनलाइन अंतःविषय पुनश्चर्या पाठ्यक्रम सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। इस कार्यक्रम में 48 विषयों के 126 संकाय सदस्यों ने सक्रिय भागीदारी की, जो 20 से अधिक भारतीय राज्यों के विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व करते थे, जिनमें केंद्रीय और राज्य संस्थानों के साथ-साथ डीम्ड और निजी विश्वविद्यालय भी शामिल थे। ये सत्र विभिन्न बहुविषयक दृष्टिकोणों से आयोजित किए गए थे।
पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का उद्घाटन जामिया मिल्लिया इस्लामिया के माननीय कुलपति प्रो. मज़हर आसिफ़ ने किया। आरंभ में, एमएमटीटीसी की मानद निदेशक प्रो. कुलविंदर कौर ने प्रतिभागियों का गर्मजोशी से स्वागत किया और मुख्य अतिथि प्रो. मज़हर आसिफ़ और पाठ्यक्रम समन्वयक, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सामाजिक समावेशन अध्ययन केंद्र के डॉ. अरविंद कुमार का परिचय कराया।
अपने परिचयात्मक भाषण में, प्रो. कौर ने 'समावेश के विचार' पर पाठ्यक्रम की संकल्पना के पीछे की दृष्टि साझा की। उन्होंने इसके उद्देश्य—पहचान के विभिन्न अक्षों पर ऐतिहासिक और वर्तमान बहिष्कारों की आलोचनात्मक जाँच करना और शिक्षकों को आत्मचिंतनशील और समावेशी कक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए सशक्त बनाना- पर चर्चा की।
माननीय कुलपति ने अपने उद्घाटन भाषण में इस बात पर ज़ोर दिया कि कैसे भारत, सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक होने के नाते, सामाजिक विविधता और बहुलवाद के पक्ष में रहा है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि जाति, धर्म या जातीयता जैसी मूलभूत पहचानें सामाजिक रूप से निर्मित होती हैं, और हम इन प्रभावों से मुक्त होकर पैदा होते हैं।
प्रो. आसिफ़ ने उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई) रिपोर्ट 2021-2022 के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जैसे हाशिये के समुदायों के छात्रों के बढ़ते प्रतिनिधित्व का प्रतिबिंब है। उन्होंने विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यकों और उच्च शिक्षा संस्थानों में उनके प्रतिनिधित्व के आंकड़े साझा किए। उन्होंने कबीर, नानक, दादू, रैदास जैसे भक्त-संतों और महात्मा गांधी, सावित्रीबाई फुले और डॉ. अंबेडकर जैसे सामाजिक क्रांतिकारियों द्वारा निभाई गई भूमिका पर चर्चा की, जिन्होंने वंचित पृष्ठभूमि में पैदा होने के बावजूद लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया। प्रो. आसिफ़ ने जोर देकर कहा कि एनईपी-2020 समावेशी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 14, 15, 16 और 46 में निहित है। उन्होंने अपने समृद्ध उद्घाटन भाषण का समापन मिर्ज़ा ग़ालिब के एक उर्दू शेर से किया:
'बस-की-दुश्वार है हर काम का आसान होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना'
इसके बाद, पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि पाठ्यक्रम तीन घटकों का मिश्रण है: (i) सैद्धांतिक और शैक्षणिक हस्तक्षेप; (ii) जाति, जेंडर, जातीयता, भाषा आदि के मुद्दों पर संवेदनशीलता; और (iii) समावेशी नीतियों को लागू करने वालों की ओर से कार्रवाई उन्मुख हस्तक्षेप।
जामिया के इतिहास विभाग की प्रो. फरहत नसरीन, मानू विश्वविद्यालय के प्रो. निशिकांत कोलगे, पंजाब विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के प्रो. राजेश गिल, जामिया के समाजशास्त्र विभाग की डॉ. गोमती बोदरा हेम्ब्रोम, सीएसएसएस, कोलकाता की डॉ. विभूति नायक, महिला एवं विकास अध्ययन केंद्र की निदेशक प्रो. एन. मणिमेकलाई, डॉ. प्रशांत नेगी, डीयू के इतिहास विभाग के प्रो. रजीउद्दीन अकील और प्रो. चारु गुप्ता ने समावेश के सिद्धांतों और व्यवहारों पर व्याख्यान दिए।
संवेदीकरण के घटक में जेएमआई के एंटी-डिस्क्रीमिनेशन अधिकारी प्रोफेसर अर्चना दासी; प्रोफेसर निशात जैदी, मानद. निदेशक, सरोजिनी नायडू महिला अध्ययन केंद्र, जामिया; डॉ. नितिन तगाडे, हैदराबाद विश्वविद्यालय; प्रोफेसर संतोष सिंह, अम्बेडकर विश्वविद्यालय; प्रोफेसर चिन्ना राव, सीएसएसआई, जेएनयू; सेंटर फॉर नॉर्थ ईस्ट स्टडीज एंड पॉलिसी रिसर्च, जेएमआई से डॉ. के. कोखो; डॉ कोर्सी डी. खारशींग; आईआईटी, बॉम्बे से प्रोफेसर रमेश बैरी के व्याख्यान शामिल थे
अधिक समावेशी समाज बनाने के लिए कार्य उन्मुख दृष्टिकोण पर व्याख्यान डॉ. ध्रुब कुमार सिंह, इतिहास विभाग, बीएचयू, प्रो. निसार खान, वास्तुकला विभाग, जेएमआई, डॉ. दीप्ति मुलगुंड, शिव नादर विश्वविद्यालय, डॉ. प्रद्युम्न बैग, समाजशास्त्र विभाग, जेएमआई, प्रो. रवि कांत, सीएसडीएस और प्रोफेसर विशाल चौहान जैसे विशेषज्ञों द्वारा दिए गए।
कुछ अन्य प्रमुख शिक्षाविदों में डॉ. रविकांत मिश्रा, (संयुक्त निदेशक, प्रधानमंत्री स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय), श्री अभय कुमार, आईएफएस, (भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के उप महानिदेशक), श्री नवल किशोर राम, (आयुक्त, पुणे, और पूर्व निदेशक, पीएमओ, पूर्व संयुक्त सचिव, वित्त मंत्रालय) और श्री चितरंजन त्रिपाठी, निदेशक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय शामिल थे।
यूजीसी के निर्देशानुसार, प्रतिभागियों को उनके लर्निंग आउटकम जाँच के लिए गहन मूल्यांकन अभ्यास से गुजरना पड़ा। इसमें एमसीक्यू परीक्षा, समानता और समावेशन से संबंधित विषयों पर समूह प्रस्तुति शामिल थी। फीडबैक सत्र के दौरान प्रतिभागियों ने एकमत से कहा कि यह पाठ्यक्रम अपनी कल्पना और कार्यान्वयन में अद्वितीय था। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम से प्राप्त सीख से उन्हें अपने संस्थानों में समावेशी कक्षाओं की दिशा में काम करने में मदद मिलेगी।
प्रो. साइमा सईद
मुख्य जनसंपर्क अधिकारी